उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक भौतिकी का विकास न्यूटन प्रणीत सिद्धांतों के अनुसार हो रहा था. प्रत्येक नए आविष्कार या प्रायोगिक फल को इन सिद्धांतों के दृष्टिकोण से देखा जाता था और आवश्यक नई परिकल्पनाएँ बनाई जाती थीं. न्यूटन की शास्त्रीय भौतिकी में यह कहा जाता था कि ब्रह्म