Maharshi Vithal Ramji Shinde

· Storyside IN · Amogh Vaidyaৰ দ্বাৰা বর্ণিত
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महर्षी शिंदेंनी दक्षिरेत ब्राह्मो समाजाचे आचार्य म्हणून काम करताना तेथील सामाजिक स्थितीचा अभ्यास केला. व्हायकोमच्या अनिष्ट प्रथेप्रमाणे तेथील समाजातील अनेक वाईट प्रथाही त्यांच्या ध्यानात आल्या. दक्षिणेत नायर आणि त्याखालील जातीच्या स्त्रिया वस्त्र प्रावरणाच्या बाबतीत जवळजवळ रानटी पद्धतीचा वापर करताना दिसत. छातीवर कसलेही वस्त्र नाही. अशा अर्धनग्नवस्थेत त्या वावरत असत. त्यांना चांगल्या सवयी लावण्याचा प्रयत्न महर्षी शिंदेंनी केली. व्हायकोम येथील अनिष्ट सामाजिक रूढी बंद व्हावी म्हणून "तिटया" या अस्पृश्य जातीच्या शिवप्रसाद या साधूबरोबर महर्षी शिंदे सत्याग्रहात सहभागी झाले. ह्या सत्याग्रहात साधू शिवप्रसादाना पंदिर प्रवेशास मनाई करण्यात आली. महर्षी शिंदेनी मंदिराचे व्यवस्थापन आणि संस्थापनाच्या दिवाणाकडे दाद मागितली. सत्याग्रहात भाषण केले. संस्थानाच्या दिवाणाचा निरोप आला. "साधू शिवप्रसाद पूर्वाश्रमीचे अस्पृश्य आहेत. तेव्हा त्यांनी जाहीर करावे की मी हिंदू नाही." अर्थात हा तोडगा महर्षी शिंदे आणि साधू शिवप्रसाद यांनी मान्य केला नाही. व्हायकोमला प्रचंड मोठी सभा झाली. त्यात महर्षी शिंदेंनी लोकांना मंदिर प्रवेशासाठी जागृती करण्याचे आवाहन केले. ह्या सर्व आंदोलनाची परिणती मात्र महर्षी शिंदेंचे ब्राह्मोसमाजाचे आचार्यपद जाण्यात झाली.

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