Gautamrishi

· Storyside IN · Amogh Vaidya-এর কণ্ঠে
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सप्तर्षीमधील एक चिरंजीव म्हणजे गौतमऋषी. प्रद्वेषी आणि दीर्घतमा म्हणजे ह्यांचे माता आणि पिता.दीर्घतमा अंगिरस कुलोत्पन्न होते. बृहस्पतींच्या शापाने ते अंध झाले होते. गौतमांना ब्रह्मर्षी म्हणून ओळखले जाते. ब्रह्मदेवाच्या सभेत त्यांच्या सेवेकरिता गौतमऋषी उपस्थित असत. ब्रह्मदेवांची मानसकन्या अहल्या ही गौतमांची पत्नी आणि या दोघांच्या पुत्राचे नाव शतानंद. त्याला शरदवत असेही म्हटले जायचे. शतानंद, राजा जनकाचे पुरोहित होते. श्रीराम-जानकीच्या विवाहात ह्यांनीच पौरोहित्य केले. गौतऋषींच्या दुसर्‍या मुलाचे नाव चिरकारित् किंवा चिरकारी. हा खूप काळ विचार करून मगच कअती करीत असे. एकदा गौतमऋषी अहल्येवर संतापले. तिला मारण्याची आज्ञा त्यांनी चिरकारीला केली. चिरकाली दीर्घसूत्री स्वभावाप्रमाणे करू नको करू असा विचार करीत राहिला. खूप वेळ निघून गेला.तेवढ्यात गौतमऋषी शांत झाले. त्यांना आपली चूक लक्षात येऊन पश्‍चात्ताप झाला. मुलाच्या दीर्घसूत्री स्वभावामुळे पत्नीचा जीव वाचला म्हणून ऋषींनी त्याचे अभिनंदन केले. पित्याबरोबर चिरकारी स्वर्गलोकात गेल्याची कथा महाभारताच्या शांतिपर्वात आहे.

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