Kaali Aurat Ka Khwab

· Vani Prakashan
5.0
15 reviews
Ebook
252
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About this ebook

 सर्दी अभी पूरी तरह उतरी नहीं थी पहाड़ से। घर के आँगन में देर रात तक बैठा जा सकता था। मैं चारपाई पर बैठा था, अब ऐसा लग रहा है कि वो चारपाई नहीं कटहरा था और मैं बैठा नहीं, खड़ा था उस कटहरे में। मेरे इर्द-गिर्द बहुत से लोग बैठे थे शायद मेरे घर वाले थे या पड़ोसी-रिश्तेदार या मेरे कोई भी नहीं, मुझे ठीक से याद नहीं। मुझे सिर्फ़ मेरे ठीक सामने बैठी अपनी अम्मी याद है। इस बार जिसकी क़ब्र पर फातिहा पढ़ने भी नहीं आये थे मेरे इर्द-गिर्द बैठे कई लोग। शायद समय नहीं निकाल पाये होंगे अपनी व्यस्तताओं से। एक ने पूछा, ‘नौकरी क्यों छोड़ दी?’ दूसरा बोला, ‘बॉम्बे जायेगा।’ तीसरे ने चटखारा लेते हुए कहा, ‘गाने लिखेगा वहाँ जाकर आनन्द बख़्शी बनेगा।’ चौथा अपनी समझदारी दिखाते हुए बताने लगा, ‘गाने लिखके पेट नहीं भरता।’ पाँचवाँ कहने लगा, ‘गाना लिखना कोई काम होता है क्या?’ छठे ने कहा, ‘काम करने का मन हो तब तो काम के बारे में सोचे।’ सातवाँ उचकते हुए बोला, ‘जहाँ काम था वहाँ तो इसने नौकरी छोड़ दी।’ आठवें ने भी अपना मुँह खोलना ज़रूरी समझा, ‘वो भी हमें बिना बताये।’ नौवाँ कहता, ‘हम ही बोले जा रहे हैं उसे भी तो कुछ बोलने दो।’ दसवाँ फिर वही सवाल दोहराने लगा, ‘नौकरी क्यों छोड़ दी?’

Ratings and reviews

5.0
15 reviews
Nandani Kumari
July 16, 2020
irshad sir just love uhhh.... 😜😜
5 people found this review helpful
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Harsh Patidar
June 3, 2020
इरशाद कामिल का गानों के पीछे की कहानीयां बताना आने वाले गीतकारों के लिए एक सिलेबस की तरह है
4 people found this review helpful
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Vijaykant Tiwari
November 9, 2021
Awesome Experience with this Book
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About the author

 इरशाद कामिल पंजाब के छोटे से कस्बे मलेरकोटला में जन्म। पंजाब विश्वविद्यालय से समकालीन हिन्दी कविता पर पीएच. डी. उपाधि। दी ट्रिब्यून समाचार पत्र समूह और इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र समूह में नौकरियाँ। वर्ष 2001 में सब छोड़-छाड़ कर मुम्बई रवानगी। मुम्बई फ़िल्म उद्योग में पहली पंक्ति के गीतकार। तीन फ़िल्म फ़ेयर, दो ज़ी सिने, दो जीमा, अलावा, दो मिर्ची म्यूज़िक अवार्ड्स के अलावा स्क्रीन, आइफा, अप्सरा, बिग एण्टरटेनमेण्ट, ग्लोबल इण्डियन फ़िल्म एवं टीवी अवार्ड और दादा साहेब फाल्के फ़िल्म फॉउण्डेशन अवार्ड जैसे लगभग सभी फ़िल्मी पुरस्कार प्राप्त। ‘शैलेन्द्र सम्मान’ से भी सम्मानित। समकालीन कविता पर आलोचना पुस्तक ‘समकालीन कविता : समय और समाज’, एक नाटक ‘बोलती दीवारें’ और एक नज़्मों की किताब ‘एक महीना नज़्मों का’ भी प्रकाशित।

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