Rigveda : Parichaya

· Vani Prakashan
4.0
4 шүүмж
Электрон ном
200
Хуудас
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ऋग्वेद आदिम मानव सभ्यता के बाद का विकास है। लेकिन इसमें तत्कालीन सभ्यता के पहले के भी संकेत हैं। ऋग्वेद में इतिहास है, ऋग्वेद इतिहास है। प्राचीनतम काव्य है। प्राचीनतम दर्शन है। प्राचीनतम विज्ञान है। इसमें प्राचीनतम कला और रस-लालित्य है। प्राचीनतम सौन्दर्यबोध भी है। अतिरिक्त जिज्ञासा है। सुख आनन्द की प्यास है। ऋग्वेद में भरापूरा इहलोकवाद है और आध्यात्मिक लोकतन्त्र भी है। भारत के आस्तिक मन में यह ईश्वरीय वाणी है और अपौरुषेय है। वेद वचन अकाट्य कहे जाते हैं। अन्य विश्वासों की तरह यहाँ ईश्वर के अविश्वासी नास्तिक नहीं हैं। नास्तिक-आस्तिक के भेद वेद विश्वासअविश्वास से जुड़े हैं। जो वेद वचनों के निन्दक हैं, वे नास्तिक हैं। वेद वचनों को स्वीकार करने वाले आस्तिक हैं। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति और दर्शन का आदि स्रोत है। विश्व मानवता का प्राचीनतम ज्ञान अभिलेख है। प्रायः इसे रहस्यपूर्ण भी बताया जाता है। इसके इतिहास पक्ष की चर्चा कम होती है। इसका मूल कारण इतिहास की यूरोपीय दृष्टि है। भारत में इतिहास संकलन की पद्धति यूरोप से भिन्न है। स्थापित यूरोपीय दृष्टि से भिन्न दृष्टि काल मार्क्स ने भी अपनायी थी। इस दृष्टि से ऋग्वेद का विवेचन भारतीय मार्क्सवादी विद्वानों ने भी किया है। ऋग्वेद साढ़े दस हज़ार मन्त्रों वाला विशालकाय ग्रन्थ है। आधुनिक अन्तर्ताना-इंटरनेट तकनीकी से बेशक इसकी सुलभता आसान हुई है लेकिन इसका सम्पूर्ण अध्ययन परिश्रम साध्य है। सभ्यता और संस्कृति के इतिहास में ऋग्वेद दुनिया का प्राचीनतम काव्य साक्ष्य है। प्राचीन मानव समाज की जानकारी के लिए ऋग्वेद से प्राचीन कोई अन्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। सभ्यताओं के विकास को समझने के लिए ऋग्वेद ही एक मात्र उपाय है। ऋग्वेद को अलग हटाकर मानव सभ्यता का विवेचन सम्भव नहीं है। ऋग्वेद भारतीय संस्कृति और दर्शन का आदि स्रोत है। ऋग्वेद के प्रति विश्व जिज्ञासा है। यह असाधारण ग्रन्थ है। इसका ज्ञान भी असाधारण ग्रन्थ द्वारा ही सम्भव है लेकिन इसका एक साधारण परिचय भी हो सकता है। साधारण परिचय के दो साधारण लाभ हैं। पहला-साधारण परिचय ऋग्वेद के प्रति हमारी जानकारी को बढ़ा सकता है। दूसरा कि साधारण परिचय हमारी जिज्ञासा को और भी असाधारण बना सकता है। ऋग्वेद से भारत के युवजन का परिचय ज़रूरी है।

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Зохиогчийн тухай

हृदयनारायण दीक्षित का जन्म ग्राम लउवा, जिला उन्नाव, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनकी शिक्षा एम.ए. अर्थशास्त्र है। 1972 में जिला परिषद् उन्नाव के सदस्य रहे। आपातकाल के दौरान (1975-1977) 19 माह जेल में रहे। उन्नाव जनपद में पुलिस व प्रशासनिक अत्याचार, स्थानीय, प्रदेशीय समस्याओं को लेकर लगातार आन्दोलन, पदयात्राएँ, जनअभियान किया है। वर्ष 1981 से अब तक भारतीय आदर्श ऐंग्लो संस्कृति इण्टर कालेज, पुरवा, उन्नाव के प्रबन्धक हैं। पं. दीनदयाल उपाध्याय कन्या इण्टर कालेज मवई, उन्नाव के संस्थापक प्रबन्धक हैं। सम्प्रति सदस्य विधान सभा (166 भगवनत नगर उन्नाव) व मुख्य प्रवक्ता, भाजपा, उत्तर प्रदेश । वर्तमान में अध्यक्ष, विधान सभा उत्तर प्रदेश हैं। पुरस्कार व सम्मान : हृदयनारायण दीक्षित और उनकी पत्रकारिता पर शोध तथा पीएच.डी. पत्रकारिता, मध्य प्रदेश सरकार का गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, राष्ट्रधर्म का भानु प्रताप शुक्ल पत्रकारिता सम्मान, राजस्थान के छोटी खाटू पुस्तकालय का दीनदयाल उपाध्याय सम्मान। प्रकाशित कृतियाँ : ऋग्वेद और डॉ. रामविलास शर्मा, मधुविद्या, सांस्कृतिक राष्ट्रदर्शन, भारतीय संस्कृति की भूमिका, भगवद्गीता, सांस्कृतिक अनुभूति राजनीतिक प्रतीति, भारतीय समाज राजनीतिक संक्रमण, जम्बूद्वीपे भरतखण्डे, संविधान के सामन्त, पं. दीनदयाल उपाध्याय दर्शन, अर्थनीति, राजनीति, तत्त्वदर्शी पं. दीनदयाल उपाध्याय, भारत के वैभव का दीनदयाल मार्ग, अम्बेडकर का मतलब, राष्ट्र सर्वोपरि, भारत की राजनीति का चारित्रिक संकट, सुवासित पुष्प श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय भाषणों का संकलन सम्पादन, राष्ट्राय स्वाहा, ऊँ, शिव, सोचने की भारतीय दृष्टि, भारतीय अनुभूति का विवेकानन्द, मधुरसा। विभिन्न दैनिक पत्रो-पत्रिकाओं में लेखन, अब तक 4 हज़ार आलेख प्रकाशित।

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