गुरुजी ने अपनी संगत के अनेक कष्टों को दूर किया है। विश्व में अनेक धर्म और गुरु हैं। यदि किसी धर्म और गुरु पर सकारात्मक आस्था एवं विश्वास से जीवन सरल हो जाता है तो उससे श्रेष्ठ कुछ नहीं है। हाँ, इसके साथ इतना अवश्य याद रखें कि अंधविश्वास एवं ऐसी रूढिय़ों से बचकर रहें, जो गर्त में धकेलती हैं। गुरुजी भी सदैव अंधविश्वास का विरोध करते थे। वे प्रत्येक मानव से यही कहते थे कि बिना फल की चिंता किए कर्म करें, सकारात्मक रहें और अपने मार्ग पर आगे बढ़ते रहें।
अधिकतर लोग स्वयं पर ध्यान देने के बजाय दूसरों पर अधिक ध्यान देते हैं। उन्हें स्वयं को सुधारने से अधिक दूसरों की निंदा करने में आनंद मिलता है। इसलिए गुरुजी कहते हैं कि कदापि किसी की निंदा न करो। जीवन के व्यावहारिक सूत्रों और मानव मूल्यों का संदेश देकर विश्वबंधुत्व और सामाजिक समरसता का पाथेय बताती ‘शुकराना गुरुजी’ की प्रेरक व पठनीय जीवनगाथा।