RANGANDHALA

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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ইবুক
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এই ইবুকখনৰ বিষয়ে

वास्तव आणि त्या पलीकडचं वास्तव या सीमारेषेवर आपल्याला गुंतवून, मृत्युनंतरच्या गूढतेचा स्पर्श मानवी मनाला देणार्या खास रत्नाकर मतकरी शैलीच्या गूढकथा...

मध्यरात्री त्याला अचानक जाग आली, ती कसल्यातरी "खळ्ळ्'' आवाजाने. अंधारातच त्याने खोलीभर नजर फिरवली.आणि एक गोष्ट लक्षात येऊन, त्याच्या छातीत धस्स झाले!आवाज झाला होता, तो दरवाजाच्या कडीचा. त्याने पक्कीलावलेली कडी आपोआप निघाली होती.आणि दार सावकाश उघडू लागले होते....जागच्या जागी खिळल्यासारखा, जगन्नाथ ते दृश्य पाहत राहिला.दारात एक जख्ख म्हातारा उभा होता. बोडका. लांबुडक्या डोक्याला तुळतुळीत टक्कल पडलेले, चेहरा सुरकुत्यांनी मढलेला. गालाची हाडे वर आलेली, आणि अस्थिपंजर शरीर. डोळे मात्र निखार्यासारखे चमकत होते. नजर जगन्नाथवर रोखलेली होती. जगन्नाथने किंकाळी मारली, पण ती ओठातून बाहेर फुटलीच नाही. त्या बोडक्या म्हातार्याने त्याला आपल्याबरोबर चलण्याची खूण केली. जगन्नाथ चालू लागला. खरेतर त्याला जायचे नव्हते, पण स्वत:च्या इच्छाशक्तीवर जणू त्याचा ताबाच राहिलेला नव्हता..... सर्व शक्ती एकवटून तिथून पळून जावे, असे वाटत होते, पण मनाचे सांगणे पाय मानत नव्हते. कुठे निघाले होते ते दोघे? अगदी नेहमीच्या वास्तवातून उठवून, रत्नाकर मतकरी आपल्या वाचकाला एका अद्भुत प्रदेशात घेऊन जातात. गूढ, भयप्रद, अनामिक. त्यांचे बोट धरून वाचक झपाटल्यासारखा पानांमागून पाने उलटत जातो... तरुण मनाच्या वाचकांना संमोहित करणार्या, मतकरींच्या वैशिष्ट्यपूर्ण आगळ्यावेगळ्या गूढकथांचा संग्रह. 

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