ये सोच है हर एक लड़की की, जिन्हें समाजरूपी बेड़ियों ने परम्पराओं का नाम देके उसे एक बंद घर, बंद कमरे में बिठा के आदर्शों का नाम दे दिया है। बस वो समाज को, दुनिया को यही कहना चाहती है- लड़की होना बुरा नहीं है। उसे भी आजादी चाहिए; अपने सपनों, अपनी जिंदगी जीने के लिए। खुले आसमान में वो भी पंख पसार सके। उसे भी खुल के जीने का हक है।
नीलम सोनी
12वीं कॉमर्स विषय। आईटीआई- कंप्यूटर ऑपरेटर प्रोग्रामिंग असिस्टेंट। एक गृहिणी। अपने काम के बाद जब भी फ्री होती हूँ तो हमेशा अपने आप से कुछ सवाल-जवाब करती रहती हूँ। फ्री टाइम में मन में जो बात उठती है, उन्हें शब्दों में लिख देती हूँ।
संपर्क: मालिया चौपड़, साहापुरा मोहल्ला
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