Hata do ek shabd Abala: मनुष्य हो मनुष्यता के लिए जिओ

· Sarnath Publishers
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About this ebook

क्या आपने कभी अपने आप को समाज में असहाय महसूस किया है? हम सभी के जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब हमें लगता है कि हमारी आवाज़ कोई नहीं सुनता। 'हटा दो एक शब्द अबला' इन्हीं भावनाओं को समझता है और आपको एक नई दिशा दिखाने का वादा करता है। इस पुस्तक में, नरसिंह मौर्य ने समाज के उन वर्गों की गहराई से पड़ताल की है जिन्हें अक्सर असहाय समझा जाता है। विशेषकर महिलाओं की चुनौतियों और उनके द्वारा किए गए बलिदानों को उजागर किया गया है। इसके माध्यम से, लेखक ने गरिमा और आत्म-सम्मान की महत्वपूर्णता को रेखांकित किया है। पुस्तक यह भी दर्शाती है कि कैसे सामाजिक अपेक्षाएँ व्यक्तियों पर दबाव डालती हैं। लेखक ने अपने गहन अनुभव और विस्तृत शोध के द्वारा पाठकों को यह समझने में मदद की है कि जीवन में साहस के साथ जीने का क्या महत्व है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद, पाठकों को न केवल समस्याओं का सामना करने का साहस मिलेगा, बल्कि वे अपने जीवन में दृढ़ता और संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होंगे। 'हटा दो एक शब्द अबला' आपके जीवन में एक महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। यह पुस्तक न केवल आपकी समस्याओं को हल करने का वादा करती है, बल्कि आपको एक नई दिशा में ले जाने का भी वादा करती है। आज ही 'हटा दो एक शब्द अबला' को खरीदें और अपने जीवन में साहस और संवेदनशीलता की नई राह खोलें।

Ratings and reviews

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11 reviews
Atal Tinkering
November 28, 2024
This is a very good book. This book must be read. Reading this book gives us the inspiration to think something new in life.
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Padma Mishra
November 29, 2024
यह कविता महिलाओं के अंदर छिपी शक्ति, उनकी अदम्य इच्छाशक्ति, और समाज में उनके महत्वपूर्ण स्थान को उजागर करती तुम अबला नहीं हो" एक प्रेरणादायक कविता है, जो महिलाओं को आत्म-विश्वास, साहस, और अपनी शक्ति को पहचानने की प्रेरणा देती है
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Sushama Maurya
November 8, 2024
You all must read it. Nice Book 👌👍👍👌
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About the author

लेखक परिचय : नरसिंह मौर्य

जन्म : 01 अगस्त, 1977 माता : श्रीमती समर्थी देवी, पिता : श्री रमेश चन्द्र मौर्य

शिक्षा और सेवा : कक्षा - 3 तक मुम्बई में; उसके बाद इंटरमीडिएट तक की पढाई

उत्तर प्रदेश के जौनपुर और प्रतापगढ जनपद के विभिन्न सरकारी विद्यालयों में

हुई । बीएससी और एमएससी की पढाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई। गेट

(ग्रेजुएट एप्टीट्यूट टेस्ट इन इंजीनियरिंग) क्वालीफाई करके भावनगर, गुजरात

स्थित सीएसआईआर लैब में लगभग डेढ साल रिसर्च वर्क किया। 26 जनवरी, 2001

का भुज में जो भूकम्प आया; तब मैं भावनगर की सीएसएमसीआरआई लैब में ही

था। भावनगर मेंभूकम्प के झटके अगस्त, 2000 से ही लगातार आ रहे थे। किन्तु

26 जनवरी को एपीसेन्टर भुज हो गया। जिस कारण भावनगर क्षति से बच गया।

शिक्षा और सेवा के लिए यात्रा करते हुए मैं दिसपुर होते हुए तेजपुर, असम स्थित

डीआरडीओ की लैब भी गया। वैज्ञानिक शोध संस्थान को छोड़ते समय मेरे मन में

धारणा थी कि वैज्ञानिक शोध की तुलना में सामाजिक शोध की अधिक आवश्यकता

है। लगभग सात साल उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा और बागेश्वर जनपदों में जीआईसी

और डायट में रहते हुए शिक्षण और प्रशिक्षण कार्य किया। कुछ महीने उत्तर प्रदेश

के उद्यान विभाग में कार्यरत रहते हुए बलरामपुर जनपद में भी रहा। वर्तमान

समय में; मैं डायट (जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान) सारनाथ, वाराणसी में

प्रवक्ता-रसायन विज्ञान, पद पर कार्यरत हूूँ।


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