Mahnubhav : ek Drusthikshep

· Saptarshee Prakashan
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ଏହି ଇବୁକ୍ ବିଷୟରେ

या ग्रंथात अनिल शेवाळकरांनी महानुभावपंथीय स्वामींच्या जीवन आणि कार्याचे तसेच तत्त्वज्ञान आचार-मार्गाविषयीचे मुक्त चिंतन मांडले आहे. मानसिकता कशी घडवाल ते संशोधकांचा हेतू असा ह्या लेखसंग्रहाचा लेखनप्रवास आहे. श्रीचक्रधर स्वामींच्या चरित्रावर प्रकाश टाकणाऱ्या महत्वाच्या लीळा आणि उपदेश हे त्यांच्या लेखनाचे प्रेरकत्व आहे. तुमचेनि मुंगी रांड न होआवी असा अहिंसेचा दिव्य संदेश श्रीचक्रधरांनी दिला. अहिंसा धर्मपालन या आचारसूत्राला स्वामींनी पराकोटीच्या उंचीवर नेल्याचं लेखक म्हणतो. सृष्टीमध्ये परमेश्वराशिवाय दुसरा कुणीच जीवाचा उद्धार करणारा नाही, हे सूत्र त्यांच्या लेखानात सर्वच लेखांमध्ये आलेलं आहे. महदाईसा ही स्वामींची आवडती शिष्या होती. तिचे धवळे मराठीत अवीट गोडीचे आहेत. म्हातारी माझ्या धर्माची रक्षक असा स्वामींनी तिचा गौरवही केला होता. स्वामी आध्यात्मिक लोकशाहीचे प्रणेते होते, असे लेखकाला वाटते. आपली मानसिकता ईश्वर धर्मानुकूल बनवून आपले कल्याण महानुभाव पंथाच्या स्वामी उपदेशाने करून घ्यावे, असे कळकळीचे आवाहन लेखकाने केले आहे.


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