Kalyug: Ek Daur 2021-21

· WHERE INDIA WRITES PUBLICATION
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Այս էլ․ գրքի մասին

इस पुस्तक के माध्यम से में दुनिया में लोगों को ये एहसास दिलाना चाहती हूँ ये बुरा वक्त हम सब के किए हुए कर्मो का ही फल हैं!

श्री कृष्ण ने कहा था 'जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ेगा तब-तब वो उसका अंत करने के लिए धरती पर जन्म लेंगे'

तो जाहिर सी बात है कलयुग का अंत तो पूर्व में ही निश्चित हो चुका!

मानव ने सृष्टि को ठेस पहुँचा कर अति कर रखी और अति का अंत कभी ना कभी तो होना ही होता है! ये कलयुग कोरोना वायरस का ही तो रूप धारण किए आया है और उत्पात धरती पर मचाया हैं!

 हर एक कविता भावनाओं से परिपूर्ण है और मानव का किसी ना किसी रूप में किया हुआ अन्याय, पाप, धोखा, किसी पर किया अत्याचार, मूक प्राणियों पर प्रहार, बड़ों की कदर नहीं छोटे पर जुल्म हजार, किसानों संग बेरहमी, वो बेटी भी रहती घर में सहमी..... ना जाने ऐसे ही कितने अनगिनत पापों का घड़ा भर रखा है.... दुनिया का तो माहौल ही खराब कर रखा है!

रूह काँप जाती है दर्द सहने वाले की....घोंट दिया गला ही जीते जीते आत्मा का....ना जाने क्यों दिल नहीं पसीजता ऐसे करते हुए समाज का... चलो आईना दिखाती हूँ इंसान के बनाए कर्म रूपी आज का..... अश्रु भी सूख गए तकलीफें हजारों सहकर.... जब समाधान नहीं कोई क्या करे वो कहकर.....

इंसान काश समझ सके कि कलयुग के इस विकराल रूप को रोकने के लिए रोकनी होगी फैलायी हुई ये अति..... तभी बंद होगी ये देश की दुर्दशा!

आशा करती हूँ समाज अपने संग दर्द समझ सके सबका

फिर देखना ज़रा दुनिया का नजारा ही अलग होगा तबका

हमें देश की हालत बदलने के लिए खुद में सुधार की जरूरत है

एक बार सोचो ज़रा जो तकलीफ और दर्द दूसरों को दिया अगर कोई हमें वही तकलीफ दे तो हमारी रूह कांप नहीं जाएगी.... क्या वो डर से उम्र भर उभर पायेंगे.... क्या फिर वही खुलकर जी पाएंगे.....

ज़रा सोचो और खुद बदलाव बनो दुनिया के लिए ।

Գնահատականներ և կարծիքներ

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Հեղինակի մասին

मेरा नाम रूबिया गोदारा है! मेरे लिए जीवन में कुछ नया सीखते रहना ही जीवन का सार है! मुझे यह प्रेरणा मेरे पिता प्रवीण जी गोदारा और माता श्रीमती वनिता गोदारा से मिली है! हर दिन मुझे नई प्रेरणा मेरी बहन और बड़े भाई (जीजा जी) से मिलती है! आज जीवन में मैंने जो भी पाया है इन्हीं से मिले संस्कार और पथ प्रदर्शन की देन है!

मैं स्वयं को भाग्यशाली और गौरवान्वित महसूस करती हूँ कि ईश्वर ने मुझे इस परिवार का हिस्सा बनाया!

परिवार के साथ के बिना इंसान अधूरा है और उसी परिवार का हिस्सा है आप सब लोग जो इस पुस्तक को पढ़ रहे हैं!

आपका स्नेह, सहयोग और आशीर्वाद ही मुझे आज यहाँ तक लाया है!

मुझे शब्दों का श्रृंगार करना अच्छा लगता है बस इसी शब्दों के श्रृंगार रस से ये पुस्तक लिखी है!

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