Iss Faisle Ko Kya Kahun?

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यह पुस्तक भारतीय लोकतंत्र के तीन स्तंभ—विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—की कार्यप्रणाली पर विचार करती है। इसमें तर्क दिया गया है कि ये व्यवस्थाएँ जनता के कल्याण के बजाय उनके दमन के लिए बनाई गई थीं, विशेष रूप से औपनिवेशिक काल में। मैकाले द्वारा निर्मित कानून और न्याय प्रणाली को एक झुनझुने के रूप में प्रस्तुत किया गया, ताकि जनता के रोष को दबाया जा सके। आज, इन व्यवस्थाओं में कई खामियाँ सामने आ रही हैं, जो संकेत देती हैं कि इन्हें परिवर्तित करने का समय आ चुका है। पुस्तक बदलाव की आवश्यकता और उसकी दिशा पर प्रकाश डालती है।

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Acerca do autor

मेरा जन्म बिहार राज्य में छपरा जिला, थाना माँझी के डुमरी गॉंव में हुआ है। प्रारंभिक शिक्षा डुमरी गॉंव में ही हुई तब गॉंव में केवल मध्य विद्यालय तक की शिक्षा की व्यवस्था थी। उच्च विद्यालय की शिक्षा के लिए बच्चो को मांझी दलन सिंह उच्च विद्यालय में पढ़ने के 

लिए जाना पड़ता था। डुमरी मध्य विद्यालय से शिक्षा पूरी करने के बाद मै मांझी उच्च विद्यालय से 1993 में बिहार बोर्ड उतीर्ण हुआ, आगे की शिक्षा के लिए जिला में जाना पड़ा । बाबा साहव यूनिवर्सिटी मुज्जफरपुर से मनोविज्ञान से स्नातक की पढाई पूरी किया। माता पिता चाहते थे कि मै आगे की पढाई जारी रखु, लेकिन घर की स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए परिवार के सदस्यों के पेट की आग बुझाने के लिए मै शहर की ओर रुख किया। बचपन से कविता और कहानिया लिखने के प्रति अभिरुचि थी, मै पांचवी क्लास में पढता था तब पहली कवीता लिखा जिसका शीर्षक “भूखा हिंदुस्तान” जिसकी पहली पंक्ति है 

कौन सुनेगा किसे सुनाऊं, व्यथा भरी दास्तान।

तड़प रहा आंखों के आगे, भूखा हिंदुस्तान।।

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