लोक परलोक के जटिल विषयों को समेटे रचनाओं के शीर्षक, बीज सूत्र की भांति पथ प्रदर्शन के एक अभिनव प्रयोग को इंगित करते हुए बता देते हैं कि स्व व आत्म अध्ययन करने वाले स्वाध्यायी किस प्रकार आध्यात्मिक वीथियों से लोक कल्याण की मुख्य धारा का मार्ग प्रशस्त व प्रकाशित कर देते हैं।
एक और विशेषता आकर्षण का केंद्र है कि लेखिका ने अपनी लेखनी में न केवल राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत वीर रस एवं ईश्वर से सीधे संवाद आधारित आध्यात्मिक अनुभूति और देश-दुनियांँ की भूत व वर्तमान स्थिति पर एक समाज विज्ञानी के रूप में चिंतन आधारित विभिन्न विषयों को उत्कीर्णित किया है वरन् बाल्यकाल से लेकर तरूणी होते हुए मां बनने तक के नारी मन में उठने वाले भावनाओं के उद्वेग और युवाओं की आकांक्षाओं आधारित अपेक्षाओं की काव्यमयी प्रस्तुती इस प्रकार की है कि जब वे बालकों के लिये लिखती हैं तो बालक बन जाती है, युवाओं के लिये लिखती हैं तो युवा बन जाती है। इसी प्रकार नारी अत्याचार पर दुखी होती है, राष्ट्र नायकों के प्रति श्रद्धानत होती हैं, युवाओं को अन्याय के विरूद्ध खड़ा होने को प्रेरित करती है, अपनी स्मृतियों की पिटारी को उलटते पलटते मिलने वाली मुख बाधित लेखनी उनको संबल देती है और मधु उस तूलिका को थामे स्व की तलाश करते हुए अपने शब्द शिल्प संसार की रचना करती है जो आज आपके हाथों में प्रस्तुत है।