बिहार की देखी, सुनी और भोगी कहानी। कुछ-कुछ नॉस्टेल्जिया टाइप। कहानियों में प्रेम कहानी का चलन बड़े ज़ोरों पर है। यह भी एक प्रेम कहानी है। हिन्दू लड़के और मुस्लिम लड़की की। इस कहानी के इर्द-गिर्द कई छोटी-छोटी कहानियां हैं। दोस्ती की। इश्क़ की। बिहार की स्टीरियोटाइप जीवनशैली से निकल कर दिल्ली का चलन सीखने आए कुछ दोस्त जिनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों में प्यार कब उनके सपनों से बड़ा बन गया पता ही नहीं चला। फिर भी सपनों का लबादा है कि पीठ से उतरता ही नहीं। यही आम बिहारी की जिजीविषा का सार है। इसके इतर अतीत से वर्तमान या यूं कहें कि बढ़ते वर्तमान के झरोखे से ढ़लते अतीत का चित्रण। इस बदलते चित्रण में दलित हैं तो सामन्त भी हैं। माओवाद है तो रणबीर भी है। दिल्ली का विलक्षण ककहरा है तो भदेसपन भी है। प्रहसन है तो रुदन भी है। और भी बहुत कुछ है..पर सबसे बढ़कर इसमें बिहार है।