भाईजी एक गृहस्थ संन्यासी थे। देश के सभी महापुरुषों के प्रति उनका सम्मान और विनम्रता अकृत्रिम थी। लोककल्याण के लिए समर्पित उनकी जीवन-साधना सत्य, धर्म और न्याय के आचरण से उद्भूत थी। स्वाधीनता संग्राम के सेनानी रहे भाईजी के मन में यश, समान और ऐश्वर्य प्राप्त करने की कभी कोई आकांक्षा पैदा नहीं हुई। उनकी लोकसेवा, दिव्य तेज और भावपूर्ण जीवन के बारे में अनेक श्रेष्ठ और अधिकारी विद्वानों ने अत्यंत आदर सहित उल्लेख किया है।
भाईजी के पत्रों के इस संक्षिप्त लेकिन महत्त्वपूर्ण संकलन को पाँच खंडों में वर्गीकृत किया गया है। समग्रता में देखा जाए तो इन पत्रों में एक पूरे दौर की समय-संस्कृति व्यक्त हुई है। इसमें सामाजिक, साहित्यिक, राजनीतिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक, दार्शनिक, धार्मिक और आध्यात्मिक जिज्ञासाओं के पक्ष उजागर हुए हैं, जो आज शायद अधिक प्रासंगिक हैं।