17 सितंबर, 1965 को जब अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद ने न्यूयॉर्क सिटी के बंदरगाह में प्रवेश किया तो इस ओर अमेरिका के कुछ ही लोगों का ध्यान गया, लेकिन वह कोई सामान्य आप्रवासी नहीं थे। वह अमेरिका के जनसामान्य का परिचय वैदिक भारत की शिक्षा से कराने के अभियान पर निकले थे।
इक्यासी वर्ष की आयु में 14 नवंबर, 1977 को अपने निधन से पूर्व प्रभुपाद का अभियान सफल हो चुका था। वह इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) की स्थापना कर चुके थे, जिसे आम बोलचाल में ‘हरे कृष्ण आंदोलन’ के नाम से जाना जाता है। उनके जीवनकाल में ही यह 100 से अधिक मंदिरों, आश्रमों और सांस्कृतिक केंद्रों के एक विश्वव्यापी महासंघ का रूप ले चुका था। इस्कॉन के संस्थापक के रूप में वह पश्चिमी प्रतिसंस्कृति के एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में सामने आए, जिन्होंने हजारों अमेरिकी युवाओं को दीक्षा दी।
श्रील प्रभुपाद अपने करिश्माई नेतृत्व के लिए प्रसिद्ध हैं, जिनके अनुयायी अमेरिका, यूरोप और भारत समेत कई देशों में हैं। उनकी जीवन-कहानी से प्रेरित होकर आप निश्चित रूप से आत्मानुभूति के पथ पर अग्रसर होंगे।
विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक विभूति पूज्य प्रभुपाद स्वामीजी के त्याग, समर्पण और मानवकल्याण को समर्पित प्रेरक जीवनगाथा है यह पुस्तक।