Gangot

· Storyside IN · Saurabh Gogte-এর কণ্ঠে
অডিওবুক
3 ঘণ্টা 28 মিনিট
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এই অডিওবুকের বিষয়ে

यथा काष्ठं च काष्ठं च समेयातां महौदधौ। समेत्य च व्यपेयतं तद्‌वद्‌भूतसमागम:॥ वाढत्या वयाबरोबर पुढे पाहण्याऐवजी मन मागेच पाहण्यात रमते... आयुष्याच्या ह्या प्रवासात कितीतरी माणसे भेटली. नात्याची, बिननात्याची, कुणी पोटापाण्याच्या व्यवसायात भेटली. कुणी मैफिलीत भेटली. कुणाकुणाच्या बैठकीत सामील होण्याचे योग आले. कुणी प्रवासात भेटले. कुणी शेजारी म्हणून लाभले. कुणी आळीतले आळीकर, कुणी गावातले गावकर. कुणी जवळ आले, कुणी खेचून जवळ घेतले. काहींचे आकर्षण वाढले, काहींचे अचानक कमीही झाले. वर्ड्‌स्‌वर्थच्या 'यारो रीव्हिजिटेड्‌' यासारखी काही माणसे पुनर्भेटीत निराळीच वाटली. काहींच्या वेव्ह्‌लेंग्थ्‌स पटकन जमल्या, काहींच्या नाही जमल्या. काहींनी कधीही न फेडता येणार्‍या ऋणाचा भार अलगद खांद्यावर ठेवला. प्रत्येकाला हे असे कधी जवळीक तर कधी दुरावा अशा हेलकाव्यात तरंगणारे गणगोत लाभतच असते. माणूस कधीही एकटा नसतो. त्याने तसे असूही नये. माझे 'गणगोत' फार मोठे आहे. अनिलांनी म्हटल्याप्रमाणे 'इथे सखे नि सोबती कुणी इथे कुणी तिथे!' आपुलकीच्या डोळ्यांनी पाहताना त्यांचे जे मला दर्शन घडले त्याची ही चित्रे आहेत. न जाणो, त्यांचा आणि माझा जो सहवास घडला, त्या सहवासाचीच ही चित्रे असतील एखादे वेळी!

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